अब नहीं कर पाएगा पति मनचाहा प्यार ,वरना जाना पड़ेगा जेल , होगी 3 साल की सजा , केन्द्र ने कहा अब नहीं ........

तीन तलाक बिल मंगलवार को राज्यसभा में पास हो गया। लोकसभा में तीन तलाक बिल 25 जुलाई को पहले ही पास हो चुका है। मोदी सरकार के पिछले कार्यकाल के दौरान दिसंबर 2018 में भी यह बिल लोक सभा पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में यह अटक गया था। पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने इस पर सख्त कानून बनाने का फैसला किया था।

दो बार लोकसभा से पास, राज्यसभा में अटका 
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 2017 में तीन तलाक को निरस्त किया था। दो जजों ने इसे असंवैधानिक कहा था, एक जज ने पाप बताया था। इसके बाद दो जजों ने इस पर संसद को कानून बनाने को कहा था। संसद में यह बिल लोकसभा से तो दो बार पास हुआ, लेकिन राज्यसभा में अटक गया। इसके बाद इसे कानूनी जामा पहनाने के लिए सरकार ने अध्यादेश का रास्ता चुना है। हालांकि 6 महीने के अंदर इस पर संसद की मुहर लगनी जरूरी थी। 


जानेंकब-कब सरकार लाई अध्यादेश 
तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद इसका इस्तेमाल होने पर सरकार सितंबर 2018 में अध्यादेश लाई। तीन तलाक देने पर पति को तीन साल की सजा का प्रावधान रखा गया। हालांकि, किसी संभावित दुरुपयोग को देखते हुए विधेयक में अगस्त 2018 में संशोधन कर दिए गए थे।
जनवरी 2019 में इस अध्यादेश की अवधि पूरी होने से पहले दिसंबर 2018 में एक बार फिर सरकार बिल को लोकसभा में नए सिरे से पेश करने पहुंची। 17, दिसंबर 2018 को लोकसभा में बिल पेश किया गया। हालांकि, एक बार फिर विपक्ष ने राज्यसभा में इसे पेश नहीं होने दिया और बिल को सिलेक्ट कमेटी में भेजने की मांग की जाने लगी। एक बार फिर बिल अटक गया।
तीन तलाक को सुप्रीम कोर्ट ने घोषित कर दिया था असंवैधानिक 
बता दें कि सायरा बानो केस पर फैसला सुनाते हुए साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल प्रभाव से तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित कर दिया था। अलग-अलग धर्मों वाले 5 जजों की बेंच ने 3-2 से फैसला सुनाते हुए सरकार से तीन तलाक पर छह महीने के अंदर कानून लाने को कहा था।

जानिए- तीन तलाक बिल के बारे में, क्या हैं प्रावधान:
-बिल के प्रावधान तीन तलाक के मामले को सिविल मामलों की श्रेणी से निकाल कर आपराधिक क्षेणी में डालते है।
-तुरंत तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत को रद्द और गैर कानूनी बनाना।
-तुरंत तीन तलाक को संज्ञेय अपराध मानने का प्रावधान, यानी पुलिस बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है।
- बिल में तीन साल तक की सजा का प्रावधान रखा गया है।
-यह संज्ञेय तभी होगा जब या तो खुद महिला शिकायत करे या फिर उसका कोई सगा-संबंधी।
-मजिस्ट्रेट आरोपी को जमानत दे सकता है। जमानत तभी दी जाएगी, जब पीडि़त महिला का पक्ष सुना जाएगा।
-पीड़ित महिला के अनुरोध पर मजिस्ट्रेट समझौते की अनुमति दे सकता है।
- मजिस्ट्रेट को सुलह कराकर शादी बरकार रखने का अधिकार।
-पीडि़त महिला पति से गुजारा भत्ते का दावा कर सकती है। इसकी रकम मजिस्ट्रेट तय करेगा।
-पीडि़त महिला नाबालिग बच्चों को अपने पास रख सकती है। इसके बारे में मजिस्ट्रेट ही तय करेगा।
- यदि कोई मुस्लिम पति अपनी पत्नी को मौखिक, लिखित या इलेक्ट्रानिक रूप से या किसी अन्य विधि से तीन तलाक देता है तो उसकी ऐसी कोई भी उद्घोषणा शून्य और अवैध होगी। इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि तीन तलाक से पीडि़त महिला अपने पति से स्वयं और अपनी आश्रित संतान के लिए निर्वाह भत्ता प्राप्त पाने की हकदार होगी। इस रकम को मजिस्ट्रेट निर्धारित करेगा।
- पड़ोसी या कोई अनजान शख्स इस मामले में केस दर्ज नहीं कर सकता है।
- नियम कानून के तहत मैजिस्ट्रेट इसमें जमानत दे सकता है, लेकिन पत्नी का पक्ष सुनने के बाद। 
- यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू होगा है।
- यह कानून सिर्फ तलाक ए बिद्दत यानी एक साथ तीन बार तलाक बोलने पर लागू होगा।
विपक्ष ने जिन मुद्दों पर किया विरोध
-तलाक देने वाले पति को तीन साल के लिए जेल भेज दिया जाएगा तो वह पत्नी एवं बच्चे का गुजारा भत्ता कैसे देगा? 
-इस्लाम में शादी को एक दिवानी समझौता बताया, तलाक का मतलब इस करार को समाप्त करना है। इस कानून के तहत तलाक का अपराधीकरण किया जा रहा है। -तीन तलाक को अपराध बनाने के प्रावधान हटाने की मांग रखी गई।
-विधेयक को सेलेक्ट कमेटी में भेजे जाने की मांग। 
- इसकी जगह कोई वैकल्पिक विधेयक लाया जाना चाहिए।
- जब उच्चतम न्यायालय ने इस बारे में निर्णय दे दिया है तो वह अपने आप में एक कानून बन गया है। ऐसे में अलग कानून लाने का क्या औचित्य है?
-जब तीन तलाक को निरस्त मान लिया गया है तो फिर तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान कैसे कर सकते हैं? उन्होंने कहा कि इस सजा के प्रावधान से दोनों पक्षों के बीच समझौते की संभावना समाप्त हो जाएगी।
- विपक्षी दलों के सदस्यों ने इसका मकसद मुस्लिम परिवारों को तोड़ना बताया।
- इस्लाम में शादी एक करार है और सरकार इसे सात जन्म का बंधन बनाना चाह रही है।
- संविधान में दिए गए मूल अधिकारों का हनन है। इसमें कई ऐसे प्रावधान हैं, जो कानून संगत नहीं हैं।
- इस प्रस्तावित विधेयक में मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने की बात पेश की गई है, लेकिन उस गुजारे भत्ते के निर्धारण का तौर तरीका नहीं बताया गया है। 1986 के मुस्लिम महिला संबंधी एक कानून के तहत तलाक पाने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता मिल रहा है। इस कानून के आ जाने से पुराने कानून के जरिए मिलने वाला भत्ता बंद हो सकता है।
- इस कानून के लागू होने के बाद इसका दुरुपयोग मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ होने की आशंका है। क्योंकि विधेयक में ट्रिपल तलाक साबित करने की जिम्मेदारी केवल महिला पर है। महिलाएं के साथ अगर पुरुषों को भी इसको साबित करने की जिम्मेदारी दी जाती है तो कानून ज्यादा सख्त होगा।
बिल के पक्ष में सरकार की दलील
-विधेयक सियासत, धर्म, सम्प्रदाय का प्रश्न नहीं है बल्कि नारी के सम्मान और नारी-न्याय का सवाल।
- हिन्दुस्तान की बेटियों के अधिकारों की सुरक्षा संबंधी मामला।
- तीन तलाक विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के मकसद से लाया गया है। 
- किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिये। 
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक फैसले में इस प्रथा पर रोक लगाने के बावजूद तीन तलाक की प्रथा जारी ।
20 देशों में है तीन तलाक पर प्रतिबंध
लोकसभा में तीन तलाक बिल पास होने से पहले केंद्रीय कानून मंत्री ने रविशंकर प्रसाद ने बताया कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से 24 जुलाई तक तीन तलाक के 345 मामले आ चुके हैं। प्रसाद ने सदन से पूछा कि क्या इन महिलाओं को सरकार ऐसे ही सड़क पर छोड़ दें। केंद्रीय मंत्री प्रसाद ने कहा कि 20 से अधिक देशों में तीन तलाक पर प्रतिबंध है इसलिए इस कानून को राजनीति के चश्मे से नहीं देखना चाहिए।

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